शुक्रवार, दिसंबर 30, 2011

प्रेम का ये भी एक रूप होता है

 मुझे इस साल के बीत जाने से हमेशा एक डर सा लगा रहता था. ऐसा लगता था कि ये साल जब नया-नया आया था तो तुम्हें साथ लाया था पर जब ये जायेगा तो तुम्हें साथ ना ले जाये और देखो मेरा डर एक दम सही था...ये जाते-जाते तुम्हें भी ले गया...मुझसे दूर...

यूं  ही बातों-बातों में सब कुछ बीत जाता है और हम किसी नए इत्तिफ़ाक का बस इंतज़ार करते रह जाते हैं. साल शुरू हुआ था कि एक नयी बहार ने दस्तक दी, पता नहीं किसकी दुआओं का असर था ये. एक खोयी खुशी मेरा पता पूछकर मेरे पास चली आयी और यकीन दिलाती रही कि वो अब कभी वापस नहीं जायेगी. मैंने उसके हाथों को थामा और अपने होठों से उसे छुआ...मेरी आँखों से आंसुओ की कुछ बूंदें उन हाथों पर गिर गयी....दो पल के लिए वो हाथ कांपे और फिर उन्होंने मेरा चेहरा ऊपर उठाया.....मैंने उसकी गीली पलकें देखीं और जाना कि प्रेम का ये भी एक रूप होता है. मैंने जब भी जादू की छड़ी घुमाई वो खुशी मेरा मनचाहा रूप लेकर मेरे सामने हाज़िर हो गयी. 

जादू ही था वो कि बस खत्म हो गया सब कुछ. मुझे लगता है कि तुमने ज़रूर आवाज़ दी होगी, पर वक्त ऐसा चुना होगा कि मुझ तक पहुँची नहीं. वैसे भी कोहरा घना हो तो वक्त का सच छुप ही जाता है... और फिर इस वक्त का सच तो ये कोहरा है... और मैं, बस इसमें खो जाना चाहती हूँ.

वो एक सपना था जिसे मैंने ही अपनी आँखें मल-मल कर तोड़ा था. क्या तुम इस वक्त जान पाओगे कि कोई तुम्हारे बारे में सोच रहा है? क्या हम ठीक उसी वक्त ये जान पाते हैं कि कोई हमारी राह देख रहा होता है? क्या तुम्हें ठीक इसी वक्त मेरी आवाज़ सुनाई दे रही है? तब तो तुमने ज़रूर चौंककर इधर-उधर देखा होगा. बीच सपने में ही तुम्हें किसने बुला लिया कि तुम चले गये? क्या ऐसा हो सकता है कि हम दोनों एक ही वक्त पर एक दूसरे को पुकारें और फिर से एक-दूसरे का हाथ थाम लें?
                  
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साल  बीतने को है उम्मीद अभी बीती नहीं है... जिस रास्ते से वो खुशी बीते साल आयी थी वो रास्ता अभी वहीं खड़ा है... सर्द शामों के साथ कोहरा भी जाता रहेगा कि खुशी से कहना मेरे घर का पता भी बदला नहीं है...



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