बुधवार, अक्तूबर 09, 2013

शुक्रिया

पिछले कई दिनों से कितने ही सवाल मन में उठते और परेशान करते रहे. अपने बारे में, अपनी ज़िन्दगी के बारे में, दोस्तों के बारे में, अपनों के बारे में और भी न जाने किस-किस के बारे में. ऐसा मंथन चलता रहा कि सवालों के अन्दर से और सवाल उठते रहे और मेरा चैन लूटते रहे. यहाँ तक कि मेरी नींद भी महीनों तक मुझसे रूठी रही. कहीं सुकून नहीं मिलता. अपने-पराये सब पहचाने गए. सोचूं तो कोई परेशानी नहीं....मगर चाहूँ तो कोई हल नहीं. बस एक बेचैनी, अनमनापन....शायद इसे "Mid Life Crisis" कहते होंगे और शायद मेरी उम्र में सभी इससे गुज़रते होंगे. 

अभी पिछले कुछ दिनों से मैं अपने फेसबुक स्टेटस में अपने दोस्तों से कुछ छोटे-छोटे से सवाल कर रही हूँ मसलन "React or Respond ?" , "Strength or Weakness ?" , "Knowledge or Ignorance ?" और दोस्तों के बहुत अच्छे-अच्छे जवाब भी पा रही हूँ. आप सबका शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ और बताना चाहती हूँ कि इन सवालों को पूछने का मक़सद मेरे अन्दर उठ रहे सवाल ही हैं. 

 "Strength or Weakness ?" पर मेरे दोस्तों ने अपनी राय दी. दरअसल हम सब जानते हैं कि हमारी अपनी Strength क्या है ? मगर समय और परिस्थितियों के साथ वो Strength कहीं न कहीं दबती जाती है. हालाँकि वो हमारे अन्दर ही रहती है पर हम उसे कभी-कभी भूल जाते हैं. मेरी एक दोस्त ने लिखा भी था कि Strength और Weakness दोनों ही हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा हैं. जैसे ही हम एक को स्वीकारते हैं, दूसरे को नकार देते हैं. इसका मतलब जब हम अपनी Strength को भूलने लगते हैं, हमारे व्यक्तित्व की Weaknesses हम पर हावी होने लगती है. हम अपनी  Strength से जितना दूर होते जाते हैं, अपनी Weaknesses के उतना ही पास. 


"React or Respond ?" के जवाब में हम सब Respond ही कहना चाहते हैं. पर मैंने महसूस किया है कि जब हमारे सामने Situation आती है , कभी-कभी हमारी Weakness हम पर हावी हो जाती है और हम Respond करने के बजाय React कर जाते हैं. दरअसल Respond करने का मतलब अपनी Strength से जवाब देना होता है. और कितनी ही Situations को React करने के बजाय Respond  करके संभाला और संवारा जा सकता है.


 "Knowledge or Ignorance ?" के जवाब  में मुझे लगता है कि हम सबको इतना Knowledge तो होना ही चाहिए कि किन चीज़ों को Ignore करें और किन्हें अहमियत दें. 

हो सकता है कि मेरे दोस्त पहले से ही ये सब बातें अच्छी तरह जानते हों पर मैंने जब उनसे सवाल किये तो मुझे अपनी बात भी कहनी ज़रूरी लगी. 





सोमवार, जून 03, 2013

स्मृतियाँ

कितनी भी किफ़ायत से खर्च कीजिये, एक दिन ये सांसें ख़त्म हो ही जाती हैं. महबूब के लिए बचाकर रखी हुई सांसें एक दिन उस महबूब का पता ढूंढते-ढूंढते अपना पता भूल जाती हैं और अपने घर लौट आने के बजाय एक सूनी राह पर दम तोड़ देतीं हैं. ऐसी ही कई बमुश्किल हासिल की गई सांसों ने बार-बार उस महबूब का नाम पुकारा और लौट आने से पहले ही राह में कहीं दम तोड़ दिया.

आ ही जाती है बेवफाई की उम्र वफ़ा की इस राह पर चलते-चलते. वादों की कोई उम्र नहीं होती. अपनी हार, अपने वादे, अपने ज़ख्म क्यूँकर याद रखेगा कोई? क्या भूला जा सकता है इन्हें? या फिर भूल जाने का भरम बस कुछ पलों का ही है? कुछ पलों के सच को ज़िन्दगी भर का सच तो नहीं माना जा सकता. और फ़िर ज़िन्दगी भर का सच किसे कहेंगे? जो हम जी रहे हैं क्या वो ज़िन्दगी भर का सच नहीं है?

महबूब से मिलकर लगा यही एक सच है, बिछड़कर और भी सच लगा. फिर उसका इंतज़ार एक सच क्यूँ नहीं हो सकता? उसका साथ न होना ही उसका होना क्यूँ लगता है? इस न होने को अगर भूल जाऊं तो वो हर पल मेरे साथ ही है. बस उसे पकड़कर कैद करने की जानलेवा कोशिश नहीं करना चाहती. वो भी मेरे साथ न होने को यक़ीनन साथ होना ही मानता होगा, ये एक सच भी तो हो सकता है.

बारिश की बूंदों में झरती हमारी हंसी एक खुशगवार दिन का सच रही है. घास पर बिखरी ओस की बूंदों जैसी हंसी....हवाओं में एक गीत....एक संगीत बिखेरती हंसी....हम दोनों को जोड़ने वाली हंसी....

स्मृतियों की नीव एक सच पर रखी होती है....उस सच के साथ जीने की कोशिश हमें अपने आप से दूर किये जाती है, फिर भी हमारे वजूद का एक ज़रूरी हिस्सा हैं स्मृतियाँ....

बुधवार, जनवरी 16, 2013

रीती हुई तन्हाई में बीता हुआ दिन

दिल छलनी हो चुका है अब इन घावों पर नमक डालकर दर्द का एहसास न करवाओ। साल ज़रूर नया है मगर घाव वही पुराने से ....तुम मुझे बस एक वजह बताओ कि मुझे तुमसे अब भी प्यार क्यूँ करते रहना चाहिए ....अब तो मुझे रोना भी नहीं आता कि जी हल्का हो जाये ....आह ! आस-पास सब कुछ इतना तेजी से बदल रहा है ...बस ये माइग्रेन का दर्द है जो बरसों से बदला नहीं है ...

रीती हुई तन्हाई में बीता हुआ दिन ....जो कुछ भी आपने पास चाहा वो दूर ही नज़र आया ...और ....जो कुछ सोचा नहीं था वो जीवन का एक हिस्सा बन गए ... उदास जी , उदास दोस्त , उदास रातें ,उदास सपने और जाने क्या क्या उदास ...एक उदास दिन में उस पुराने ख़्वाब की दस्तक जिसमें पापा दिखाई देते हैं ...

सत्रह साल होने को आये पापा को ये दुनिया छोड़े पर मेरे सपनों में वो आज भी छुक-छुक रेलगाड़ी में हमको घुमाने वाले पापा बनकर आते हैं ...और मैं उनसे कहती हूँ कि छोड़ो पापा , अब और नहीं घूमना है ...बस सुबह देर तक सोने का मन है ...पापा राइम करने लगते हैं, "जो सोयेगा वो खोएगा ....जो जागेगा वो पायेगा ..." और जब जाग जाती हूँ तो सोचती हूँ की पापा से कहूँ कि चीज़ें बदल गयी हैं ...अब चैन की नींद आये एक ज़माना गुज़र गया है ....अब सोकर कुछ नहीं खोना है अलबत्ता सुकून ज़रूर मिल जायेगा ....

माँ की चिंताएं एक दम अलग हैं ...कहती हैं तुम सब लोग तैयार रहना मैं कभी भी अंतिम विदाई ले लूंगी . कोई उन्हें कैसे बताये कि उनके होने का क्या अर्थ है हमारे लिए ...वो एक ऐसी धुरी हैं जिसके चारों ओर पूरे घर की खुशियाँ चक्कर लगाती हैं ....तुम सदा सलामत रहो माँ ...खुश रहो माँ कि आज जी बहुत उदास है ....

 उसने कहा यकीन मानो
 मैं तुम्हें उदास नहीं देख सकता 
 मैंने पूछा
 बस एक बात बताओ 
 मुझे ख़ुशी किस चीज़ से मिलती है ?

 हमेशा की तरह वो खामोश ही रहा ....