इज़ाडोरा डंकन की आत्मकथा 'माय लाइफ' का हिंदी अनुवाद 'इज़ाडोरा की प्रेमकथा ' का नाम ही इजाडोरा की ज़िंदगी के महत्त्वपूर्ण पहलू यानि प्रेम से ओत-प्रोत है. इज़ाडोरा ने अपनी पूरी ज़िंदगी दो चीज़ों को समर्पित कर दी ; नृत्य और प्रेम. इज़ाडोरा ने कला और प्रेम को कभी अलग -अलग नहीं माना बल्कि उसका मानना था की कलाकार ही प्रेमी हो सकता है, उसी के पास सौंदर्य को देख पाने की सच्ची दृष्टि होती है. इसी तरह प्रेम जब सनातन सौंदर्य को निहारता है तो आत्मा की आँखें भी खुल जाती हैं और सौंदर्य कला बन जाता है.
इज़ाडोरा के बचपन की उन्मुक्तता ही उसके संपूर्ण जीवन का आधार -स्तंभ बनी, जिसने उसे विवाह जैसी संस्था का कट्टर आलोचक बनाया. इज़ाडोरा का जन्म समुद्र के आस -पास हुआ और अपने जीवन के सबसे खूबसूरत पलों को उसने समुद्र के आस -पास ही बिताया. समुद्र की बेचैन लहरों ने उसे हमेशा सुकून ही पहुंचाया , शायद इसकी उन्मुक्तता इज़ाडोरा को आकर्षित करती रही होगा. ताज़िन्दगी बंजारों की तरह इज़ाडोरा ने भी दुनिया भर में डेरे डाले और एक अदद सच्चे प्रेम की तलाश में उसने मीलों का सफर तय किया.
बिना किसी नृत्य प्रशिक्षण के इज़ाडोरा ने अपने नृत्य की प्रेरणा प्रकृति से ही ली. विशुद्ध प्राकृतिक माहौल में पली इज़ाडोरा ने अपनी माँ के पियानो के संगीत की धुन पर थिरकना शुरू किया और सारी ज़िंदगी अपने आप को तेज ओर्केस्ट्रा की धुनों से दूर रखना चाहा. कई पियानोवादकों की धुनों पर नृत्य के नए -नए प्रयोग करते हुए नए आयाम स्थापित किये. खुद इज़ाडोरा के अनुसार यदि उसे एकल नृत्य में अपना अस्तित्व खोजना होता तो उसकी ज़िंदगी कहीं ज़्यादा सरल और भटकाव से दूर होती. पर छः वर्ष की कच्ची उम्र में ही इज़ाडोरा नृत्य-स्कूल खोलने का सपना देखने लगी और बाद में उसने तमाम परेशानियों के बावजूद भी अपने जीवन का लक्ष्य नृत्य-स्कूल ही रखा. जहां हज़ारों बच्चों पर वर्षों तक उसने कड़ी मेहनत की और उन्हें एक साथ मंच पर नृत्य करवाने का सपना भी पूरा किया.
इज़ाडोरा ने जब भी, जहाँ भी नृत्य किया वहाँ नीले रंग के पर्दों की मौजूदगी ज़रूर रही,ये भी उसका समंदर से लगाव ही बताता है शायद.
नृत्य की तरह प्रेम में भी उसके प्रयोग किशोरावस्था से ही शुरू हो गये थे. इज़ाडोरा को सच्चे प्रेम की तलाश थी. उसके पुरुष-प्रेम में कहीं-कहीं ठहराव के होते हुए भी चिरंतन प्यास का आभास होता है. कुछ लोगों को उसके उन आज़ाद खयालों से परेशानी ज़रूर हो सकती है, जिसके चलते उसने विवाह को एक बंधन माना. उसने विवाह किये बिना ही ऐसे तीन प्यारे -प्यारे बच्चों को जन्म दिया था जिनके पिता अलग-अलग थे. इज़ाडोरा ने अपने पहले दो बच्चों को अथाह प्यार दिया जिसे उसने अपने नृत्य-प्रेम और पुरुष -प्रेम से कहीं ऊपर रखा. और एक दिन भयंकर त्रासदी में उसने अपने दोनों बच्चों को खो दिया. इस घोर दुःख ने उसे नृत्य और ज़िंदगी दोनों से दूर कर दिया. भयंकर अवसाद ने उसे बार -बार आत्महत्या जैसे ख्यालों की ओर धकेला, लेकिन अपनी ज़िंदगी से प्यार करने वाली इज़ाडोरा ने ज़िंदगी का दामन पकडे रखा. फिर एक दिन समुद्र पर टहलते हुए उसकी मुलाकात जिस शख्स से हुई वही शख्स उसके तीसरे बच्चे का पिता बना. ये खुशी बस चंद घंटो की ही थी . उस बच्चे के देहांत ने इज़ाडोरा को अनंत भटकाव में छोड़ दिया.
इज़ाडोरा ने नृत्य स्कूल के बच्चों के चेहरों में अपने बच्चों को बार-बार तलाशा लेकिन गहरी हताशा और निराशा के दिनों में वर्ष 1914 में छिड़े युद्ध के दौरान उसके नृत्य -स्कूल को एक अस्पताल की शक्ल दे दी गयी.
अगले कुछ वर्षों में उसकी ज़िंदगी में कुछ अच्छा नहीं घटा, सिवाय इसके की एक पियानोवादक उसकी ज़िंदगी में फरिश्ता बनकर आया . आने वाले समय में इज़ाडोरा की ही एक शिष्या के साथ इस फ़रिश्ते को अपना भविष्य नज़र आया और इज़ाडोरा के लिये ये दुःख अपने बच्चों को खोने जैसा ही रहा.
त्रासदी की पराकाष्ठा से गुज़रने पर भी इज़ाडोरा ने प्रेम और आध्यात्म पर विश्वास किया. उन्नीसवीं सदी की महानृत्यांगना , महाप्रेमिका और महानायिका जो हमेशा इक्कीसवीं सदी की तर्ज़ पर जीती रही. उसका सपना था अपने इज़ाद किये हुए प्राकृतिक भाव - भंगिमाओं वाले नृत्य को 'अमेरिका के नृत्य ' के रूप में स्थापित करना जिसे पूरा करने में वो काफी हद तक सफल रही. लेकिन अपने जीवन के अंतिम छः वर्ष उसने रूस में गुज़ारे और एक कार दुर्घटना में रहस्यमय ढंग से उसने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.
क्या यह वो ही इजाडोरा है जिसने अपने जीवन भर की कमाई जिस स्कूल को स्थापित करने के लिए खर्च दी उसी स्कूल को उनके एक विश्वासपात्र मित्र ने धोखे से हथिया लिया था.जीवन के अंतिम दिन उन्होंने हताशा और निराशा भरे बिठाये.उनका संबंध भारत से भी रहा था?शायद इसे मैंने आपके यहाँ ही pdha ho.
जवाब देंहटाएंji Indu ji, ye wahi Izadora hain....bahut deri se uttar dene ke liye mafi chahati hu...
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