"सुनो, मैंने कुछ तय किया है."........"अब मैं बाकी सब चेहरे भूल जाना चाहता हूँ."......इस बात का ठीक-ठीक मतलब समझना मुश्किल था उस वक्त. पर अब कुछ-कुछ समझ में आ रहा है. कोशिश ही कहाँ की थी कुछ भी समझने या जानने की और सच तो ये है कि इस बात का कोई अफ़सोस भी नहीं होता. एक अरसे बाद मिले थे फिर ऐसी फ़िज़ूल बातों के लिए वक्त ही कहाँ था.
मौसम को अपने रंग में ढालना हो या फिर कोई शायरी कहनी हो, कोई बात उसके बगैर पूरी नहीं होती थी. हर तरफ एक ही ख्याल....हाँ, अब उसे खुद अपनी ही खबर नहीं थी. "मैं तुम्हें एक बार छू कर देखूँ तो यकीं हो कि तुम हो..." ऐसा एक बार बेखयाली में कहा था उसने.... उस दिन से लगने लगा कि शायद ये एक ख़्वाब है.....इसके बाद वे दोनों आगे बढ़े, फिर रुके.
"तुम मेरे साथ चलोगी ?" ऐसा ही कुछ उसने कहा था एक दिन. आस-पास के शोर से एकदम अलग लगी थी उसकी आवाज़. एक ठहराव, फिर भी एक शोखी थी उसकी आवाज़ में, जो उसे बहुत पसंद थी. क्या सब कुछ वैसा ही होता है जैसा दिखाई देता है?
यूँ भी कभी प्यार कम हुआ .. कभी नहीं !
जवाब देंहटाएंप्यार कैसे कम हो सकता है? :-)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मनोज जी, नीरा जी
जवाब देंहटाएंनीरा दी, आपकी पोस्ट याद आ गई, 'कट कॉपी पेस्ट...यू आर फायर्ड जानेमन!' जयश्री जी यह दरकना असल में संभलना है...बधाई!
जवाब देंहटाएंऔरत..... पढ़ कर यही आया बस मन में।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रतिभा जी, आपने कितना सही कहा है कि यह दरकना असल में संभालना है.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कंचन जी, आपने पूरी पोस्ट को एक ही शब्द में बयां कर दिया.
प्रतिभा जी, एक बात और...नीरा जी की पोस्ट 'कट कॉपी पेस्ट...यू आर फायर्ड जानेमन!' भी पढ़ी. पोस्ट तो खूबसूरत थी ही, पर आपकी निगाहें बड़ी पैनी हैं. शुक्रिया एक बार और...
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