"सुनो, मैंने कुछ तय किया है."........"अब मैं बाकी सब चेहरे भूल जाना चाहता हूँ."......इस बात का ठीक-ठीक मतलब समझना मुश्किल था उस वक्त. पर अब कुछ-कुछ समझ में आ रहा है. कोशिश ही कहाँ की थी कुछ भी समझने या जानने की और सच तो ये है कि इस बात का कोई अफ़सोस भी नहीं होता. एक अरसे बाद मिले थे फिर ऐसी फ़िज़ूल बातों के लिए वक्त ही कहाँ था.
मौसम को अपने रंग में ढालना हो या फिर कोई शायरी कहनी हो, कोई बात उसके बगैर पूरी नहीं होती थी. हर तरफ एक ही ख्याल....हाँ, अब उसे खुद अपनी ही खबर नहीं थी. "मैं तुम्हें एक बार छू कर देखूँ तो यकीं हो कि तुम हो..." ऐसा एक बार बेखयाली में कहा था उसने.... उस दिन से लगने लगा कि शायद ये एक ख़्वाब है.....इसके बाद वे दोनों आगे बढ़े, फिर रुके.
"तुम मेरे साथ चलोगी ?" ऐसा ही कुछ उसने कहा था एक दिन. आस-पास के शोर से एकदम अलग लगी थी उसकी आवाज़. एक ठहराव, फिर भी एक शोखी थी उसकी आवाज़ में, जो उसे बहुत पसंद थी. क्या सब कुछ वैसा ही होता है जैसा दिखाई देता है?