सोमवार, मई 09, 2011

रेशमा मेरे ख़्वाब में तुम उदास नहीं थी


सुबह के पाँच बजकर पचपन मिनट. एक अप्रत्याशित अनमनेपन से आँख खुली. रेशमा तुम्हें तो दुनिया छोड़े कई बरस बीत गये ,फिर आज अचानक मेरे ख़्वाब को ज़रिया बनाकर लौटना क्यों चाहा ? ज़िंदगी जैसे खूबसूरत ख़्वाब को खुद अपने हाथों से खतम करते समय तुम्हें किसका ख्याल सबसे ज्यादा आया होगा ? मैंने सुना था, जाने से पहले तुमने ढेर सारा पूजा पाठ किया था. काश कोई उस वक्त जान पाता कि तुम क्या सोच रही हो.
कहाँ जान पाते हैं हम किसी के दिल की बात ? जान ही लेते तो कुछ अचंभित करने वाले पल कैसे ज़िंदगी का हिस्सा बनते. ज़िंदगी के आखिरी पड़ाव , जो खुद एक अप्रत्याशित चीज़ हो सकती है , पर ये जानना कि आप किसी के ख्वाबों का अहम हिस्सा रहते आये हैं , सुख से मरने के अलावा क्या दे सकता होगा ? फिर इस बात के क्या मायने रह जाते हैं कि इस बीच आपने किन्हें अपने ख्वाबों में जगह दी ? फिर तो ज़िंदगी के बीते सालों की हकीकत भी ख़्वाब से कुछ कम नहीं लगती.
रेशमा , तुमने मुझे ख़्वाब में जो गाना सिखाने की गुजारिश की , वो भी कुछ उदास सा ही था. तो क्या तुम हमेशा उदास रहती आयी थी ? पर मेरे ख़्वाब में तो तुम्हारा चेहरा उदास नहीं था. एक सपनीली मुस्कान बिखेरकर तुमना कहा कि मैं तुम्हें एक गाना सिखा दूँ. पर बदले में मेरी मुस्कान नहीं दिखी होगी तुम्हें. शायद मैंने ख़्वाब में भी जान लिया कि तुम सचमुच में नहीं लौट आयी हो. तभी तो एक अनमनी उदासी से मेरी आँख खुल गयी. सोचा मैंने कि तुम्हें अब वो सुकून मिल ही जाना चाहिए जिसकी तुम हक़दार रही होगी.
चीज़ों को बहुत सहेजकर रखने का हुनर अब तुम्हें आ जाएगा कि इससे पहले तुम्हें मुहब्बत जैसी बेशकीमती चीज़ मिली ही नहीं थी. ऐतबार करना भी तो आ जाएगा तुम्हें कि तुम किसी के खूबसूरत ख़्वाबों का अहम हिस्सा हो. फिर जाने की बात न करना कि दिल डूब जाएगा मेरा.

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