मंगलवार, मई 03, 2011

एक आहट भी उम्मीद का एक सिरा बन जाती है

  खाली उदास सा एक दिन. कुछ ख़ास करना भी न हो और सोचने पर कोई मनाही नहीं. ऐसे में कोई अपनी सी लगने वाली आवाज़ चौंका दे तो प्यार पर यकीन करने को जी चाहता है. अजनबी से लगने वाले रास्ते एक जानी-पहचानी मंज़िल का पता दे रहे हों जैसे. एक मासूम मुलाकात.....साथ गुज़ारी हुई चंद घड़ियाँ....और झूठ-मूठ का गुस्सा.... सब दर्ज़ हो जाता है खुद-ब-खुद आँखों के आइनों में. फूल की एक आह पर बेचैन हो जाने वाला भंवरा...सागर के सीने में छुपे राज़ जानने को बेताब किनारा....और अपनी प्रेयसी को हूबहू आँखों में उतार लेने वाला उसका चाहने वाला.....सबकी मंज़िल बस प्रेम ही तो है.
    तुम इसे बखूबी समझते हो कि खाली दिन में याद कैसे - कैसे पीछा करती है. एक आहट भी उम्मीद का एक सिरा बन जाती है जिसे पूरी होने के लिए उम्र के बीस साल भी बढ़ा दिए जाएँ तो नाकाफी हैं. दिलासे किसी मरहम का सा काम करते ज़रूर हैं, पर राहत नहीं मिलती. ठंडी सीली हवा की चुभन कहाँ जा पाती है हल्की सी धूप से ? दूज के चाँद को देखकर अफ़सोस और बढ़ता ही है कि खूबसूरत चीज़ों की उम्र छोटी क्यों होती है ? पर तुमने हर नामुमकिन सी ख्वाहिश को पूरा करके सारे अफ़सोस कम कर दिए हैं.
  उम्र कुछ इस अंदाज़ से ठहरी सी थी मानो उसका लौट कर पीछे जाने का मन हो रहा हो. पर वक़्त आगे ही आगे....निरंतर...अपनी रफ़्तार से. जैसे तेज़ बहाव में रुका हुआ कोई खूबसूरत मंज़र. कुछ ऐसे मंज़र होते हैं जो दूर से बहुत प्यारे लगते हैं और कुछ को सिर्फ नज़दीक से ही महसूस किया जा सकता है. पर एक खाली -खाली से लम्हे में याद आने वाले मंज़र आंखों के रास्ते दिल में बस चुके होते हैं. ऐसे ही कुछ मंज़र आज बेइंतहाँ याद आये जिन्होंने एक लम्बा सफ़र तय किया यहाँ तक पहुँचने के लिए.

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