सोमवार, अक्तूबर 08, 2012

रूह बसती है इश्क करने वालों की आँखों ही में कहीं...

उसे जिससे वफ़ा की उम्मीद थी उसने उसे बेवफाई के लायक भी नहीं समझा.... वो बस एक ही साँस में अपनी बात कहे जा रही थी, इस उम्मीद से कि कोई ऐसा जवाब आएगा जो उसे खुश कर देगा....अचानक उसने महसूस किया कि उसे सुनने वाला जड़ हो गया है...कोई सवाल-जवाब नहीं....बस एक ख़ामोशी...चुभने वाली ख़ामोशी...

उसे लगा उनके बीच अब लड़ाई-झगड़े जैसा कुछ हुए एक अरसा बीत गया है...और प्यार जैसा कुछ हुए उससे भी लंबा अरसा...वो बुझ गयी, उदास हो गयी...

उस जैसा नहीं था उसका महबूब...पर उससे कुछ ज़्यादा अलग भी नहीं लगता था...पर अब वो बदल गया था...किसी और का भी नहीं हुआ...बस खुद अपना हो गया था...उसे खुद के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता था...एक नशा सा उस पर सवार रहता था...इस बीच वो भूल चुका था कि वो कितनी अकेली हो गयी थी उसके बगैर...

ना...कुछ भी नहीं बदलता प्यार करने वालों के लिए...बस उन लोगों की फ़ितरत बदल जाती है जिन्हें प्यार किया जाता है...

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वो एक अबोली आँखों वाली लड़की थी
रूठी-रूठी सी
चुप 
उदास

सुना  था उसने कि 
रूह बसती है
इश्क करने वालों की आँखों ही में कहीं...

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गर्द आसमां ने मिटा दी उसकी लिखावट
महबूब को खत अभी भेजा नहीं था...

वो एक नेक दिन का इंतज़ार किया करती थी...

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