बुधवार, अगस्त 22, 2012

रिदम ऑफ हर लाइफ

उसकी मुस्कुराहट को एक आवाज़ की दरकार थी जो उसने एक अरसे से नहीं सुनी थी. यूं कहने को सब कुछ ठीक ही चल रहा था पर दिल को कहीं सुकून न था. हर तरह के मौसम देर से ही सही, लौट कर आते हैं...फिर इस बार के मौसम की बेरुखी इतनी लंबी क्यूँ ?

याद करने की कोशिश की तो कुछ याद नहीं आया कि इसकी वजह क्या थी.... यकीनन कोई तकरार हुई होगी. ये कोई नयी बात नहीं थी उन दोनों के बीच. पर यूं ज़िंदगी को ख़ामोशी से ज़ाया होने देना और कुछ न कहना एक दूसरे से....ये शायद पहली बार हुआ था. रात होते ही एक डर उसे घेर लेता कि अगर ये रात उसकी ज़िंदगी की आखिरी रात हुई तो वो अपने महबूब से रूठकर ही ज़िंदगी से अलविदा कह देगी. 

कितने ऊल-जलूल ख्याल रात भर उसका पीछा करते और वो इन सबसे भागते-भागते सुबह का दामन पकड़ लेती. दिन की रोशनी और व्यस्तताओं में वो अपने महबूब को भूलने की कवायत ज़्यादा से ज़्यादा करती. कमबख्त बारिशें उसका मन और भिगो देतीं. नींद उसकी आँखों से दूर....कहीं दूर रहती. कुछ अच्छे कहे जाने वाले कामों में दिल लगाने की कोशिश करते-करते एक अरसा गुज़र गया. 

पता नहीं वो किस से लड़ रही थी पर एक दिन वो हार गयी. पहले उसने अपने दिल की बात सुनी.... और फिर वो आवाज़...."रिदम ऑफ हर लाइफ".  ज़िंदगी में एक संगीत भर गया....मद्धम संगीत....और उसकी धुन पर वो मुस्कुरा रही है....

गुरुवार, अगस्त 09, 2012

बारिशें....बाहर भी....


जब से मैं खुदको वहाँ छोड़ आयी थी मेरे होने का पता कहीं से नहीं मिला. वो एक जगह, जहाँ मैं महफूज़ थी....वो बस उसका दिल था. सारे मौसम वहीँ दस्तक दिया करते और मैं जब जी करता, जितना जी करता मौसमों को अपने पास बुलाती....कोई फिक्र नहीं थी किसी बात की....कहाँ गयीं सारी बारिशें....और कहाँ खो गए वो सिहरन भरे दिन....सिर्फ एक याद ही है जो आँखों में बारिशें लाती है....और ज़हन में सिहरन भर देती है...

चाँद देखने के लिए सिर्फ छत की मुंडेर ही काफी नहीं होती ना...तुम्हारे काँधे पे सर रखकर पीले चाँद की खूबसूरती को तका था मैंने....उन दिनों फिज़ाओं का सारा संगीत मुझमे सिमट आता था....और उस संगीत में गूंजती थी सिर्फ एक आवाज़....तुम्हारी आवाज़....रिदम ऑफ माय लाइफ....मैंने उस आवाज़ को मुझमें घुल जाते हुए देखा है....और खुदको उस आवाज़ में घुलते हुए....उसके बाद कुछ याद नहीं आता कि क्या हुआ था....कहाँ खो गया सारा संगीत....और उस आवाज़ की गूंज अब तक मुझे क्यों सताती है....

कुछ भी मरा नहीं है पर सब बोझिल सा है....मन, मौसम सब कुछ....

ये गहरी आसक्ति है या अनासक्ति कुछ पता नहीं है....

भटकने के बाद वापस आने का रास्ता ढूँढना गहरी पीड़ा देता है....जो लोग चलते ही भटकने के लिए हैं उनकी पीड़ा का क्या ? क्या कोई ऐसी जगह है जहाँ सारे सवालों के जवाब मिल जाएँ ?