दीवार पर लगी ढेर सारी तस्वीरों में से कुछ को एक दूसरी दीवार ने ढक लिया था, पर जो दिखाई दे रही थीं उनसे उस घर की खुशहाली का अंदाज़ा बखूबी लगाया जा सकता था. छुप गयी तस्वीरों में शायद कोई दूसरा पहलू भी छुपा हो. गुलाबी सी ठंड में भी ठंडे फर्श पर लेटकर लड़की अपने गालों पर बह रहे गर्म आंसुओं को शायद कोई राहत पहुँचाना चाह रही थी. दुबले से शरीर पर तंग पोशाक उसकी असहजता को और बढ़ा रही थी. कहीं भी राहत नहीं...उसने लेटे-लेटे ही सोचा.
कितने छलावों के उस पार कोई एक सच होता है. असहजता में ही वो फर्श छोड़कर खिड़की के पास जा खड़ी हुई तब उसे अंदाज़ा हुआ कि वो इस समय पहली मंज़िल पर खड़ी है, जहाँ से छिछले पानी से भरा हुआ कुंड दिखाई दे रहा है...दूर कहीं से चार-पाँच सुन्दर लड़कियां उसी की तरह की भारी पोशाकों में सहजता से दौड़ती हुई आती दिखाई दीं...जो दोनों हाथों से अपनी पोशाक को ज़रा ऊपर किये हुए कुंड के पानी को लांघकर उसकी तरफ बढ़ी आ रही थीं.
इस समय वह किसी का सामना करने की स्थिति में नहीं है...उनका तो बिल्कुल भी नहीं जो उसकी आँखे देखकर उसके दिल का हाल पढ़ लेते हैं...लड़की ने छुप जाने के लिए एक अकेला सुनसान कोना ढूंढ लिया. जब कोई आवाज़ देगा तब ही सोचा जायेगा.बचपन में खेला गया खेल 'हाइड एंड सीक' याद आ गया और वो बेफिक्री भी, जो तब हुआ करती थी. अब जिनसे छुपना था, वो लोग उसे कभी न ढूंढ पायें ऐसा उसने सोचा. एक बार उसे ये ख्याल भी आया कि अपने सब ख्यालों का गला घोंट दे. इसी सुनसान कोने में अपने चारों ओर एक ऐसी दीवार खड़ी कर ले कि वहाँ से हवा का आवागमन भी बंद हो जाये...
इन सारे ख्यालों की वजह वो ही तो है...जो छलावों के उस पार का सच है...
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अब सब बदलना चाहिए. उसे प्यार करते रहने की आदत...उसे याद करते रहने की आदत...और फिर रंगीनियों में भी उदास रहने की आदत...
इस बार जब मौसम बदलेगा , आँसुओं की गरमाहट गालों पर नहीं , महबूब के होठों पर धर दी जायेगी...