शनिवार, सितंबर 10, 2011

हो सकता है कि मैं भूल भी जाऊं.....

हो सकता है कि मैं भूल भी जाऊं पर अब तक तो सब याद है कि किस तरह दूर कहीं से एक भीगा हुआ खत मेरे  पहलू में आ गिरा था. शायद वो किसी के आंसुओं से भीगा था. मैंने खत को उलट-पलट कर देखा पर कुछ समझ में नहीं आया. बस यूं ही रख दिया, पर उसके बाद कुछ दिन एक बेचैनी ने घेर लिया था मुझे. फिर उसे खोलकर पढ़ ही लिया. कुछ जाना-पहचाना सा लगा मगर याद नहीं आया कि उससे मेरा रिश्ता क्या था.

मैंने  जानने की थोड़ी-बहुत कोशिश की तो मालूम हुआ, किसी बिछड़े हुए ने किसी अपने को याद किया था. वो अपना, जिससे कुल मिलाकर उसने एक ही मुलाकात की थी. पता नहीं क्या कसक बची होगी उस घड़ी दो घड़ी की मुलाकात में, जो उसे भुला नहीं पाया होगा. कई पुरानी बातें, कई यादें, जो कभी किये नहीं वो वादे उस खत का मजमून बनते गये. वो भीगा हुआ सा खत एक भीनी महक लिए हुए चौबीस घड़ी साँस लेने का सबब बन  गया. अब वो आंसुओ से भीगा हुआ नहीं बल्कि प्यार की बारिश में नहाया हुआ मालूम होता था.

पयाम भेजने के साथ-साथ एक मुकम्मल पता भी ज़रूर लिखा होगा भेजने वाले ने, पर कमबख्त बारिशों की फ़ितरत ही कुछ ऐसी होती है कि वो अपने साथ में अक्सर आँसू ही नहीं, और भी बहुत कुछ ले बीतती हैं. वो पयाम किसके नाम से भेजा गया था ये मालूम न था पर जब मैंने उसे अपना जान कर जी लिया तब मालूम हुआ कि वो गलत पते पर आया हुआ खत था. उदासियाँ उसका पता थीं और मेरा पता उन उदास तंग गलियों में नहीं था. पर अब जब भी बारिश मेरे आंसुओं को अपने आँचल में सजा लेती है वो भीगा हुआ सा खत बस यूं ही याद आ जाता है कि अभी उसकी महक भी ज़हन में ताज़ा है....

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