शनिवार, अप्रैल 30, 2011

मुहब्बत की बची हुई साँसों का हिसाब

वो कहानियों और किस्सों में जान डालता रहा और मुहब्बत की बची हुई साँसों का हिसाब मेरे हिस्से में आ गया. उसकी कोशिशें शायद रंग ले भी आयें पर इन आखिरी साँसों का हासिल कुछ भी न होगा. ये आईने हैं ज़िंदगी के जो टूट कर कितने ही चेहरे दिखा जाते हैं, कुछ साबुत और कुछ एक दम ज़ार-ज़ार. हाँ, मैंने उन चेहरों को पढ़ने की कोशिश में जिंदगी को अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है.

दुःख की बंजर ज़मीन को आंसुओं से सींचकर कुछ कैक्टस उगाए कि कभी-कभी उसपर उग आने वाले छोटे-छोटे फूल वीरानियों को कुछ कम कर जाते हैं. पर सच तो ये है कि कैक्टस पर उग आये कांटो ने रेशमी दामन को हमेशा छलनी ही किया है और छलनी हुए दामन से आँसू नहीं पोंछे जाते.

बीती  रात ऐसे ही कुछ काँटे बिस्तर पर भी उग आये और जागती आँखों में एक सवाल भी जागता रहा जो एक दिन मैंने तुमसे पूछा था कि हमारे मिलने का सबब क्या है? तुमने कहा था, "वही, जो ज़िंदगी जीने का है."

आज, जब मुझे ये लग रहा है कि ज़िंदगी बेसबब है तो ये डर भी लग रहा है कि क्या हमारा मिलना भी यूँ ही बेसबब था? काँटों की चुभन से जो खून के आँसू रिस रहे हैं उनका मरहम भी नहीं है मेरे पास.



गुरुवार, अप्रैल 28, 2011

कुछ इत्तिफ़ाक खतों की तरह हसीन होते हैं

कुछ इत्तिफ़ाक खतों की तरह हसीन होते हैं और उनके मजमून किसी ख़्वाब जैसे अनजाने और अप्रत्याशित.....मसलन, एक लम्बी वीरानी के बाद खुद चाँद धरती पर उतर आये और अपनी सारी चांदनी को लुटा देने का हौसला दिखा दे. वीरान ख्वाबों की बंजर ज़मीन पर रूहानी प्यार का मौसम दस्तक दे रहा है कि तुम अब मेरे ख्वाबों का ही नहीं, ज़िंदगी का भी अहम हिस्सा हो.

             मैंने हर ख़्वाब में तुमसे ये गुज़ारिश की है कि तुम मेरे खतों में वो सब पढ़ना, जो लिखा नहीं है. कि नदी ने अब अपना रुख बंजर ज़मीन की ओर कर लिया है.....आवारा हवाओं ने सारे फूलों की खुशबू समेट ली है इस कायनात में लुटाने को.....सारे साज़ बज उठे हैं अपना मधुर संगीत बिखेर देने को, गोया इन्हें अपनी मंजिल मिल गयी हो.

             इस बेलगाम भागती ज़िंदगी में तुम्हारा मिल जाना भी तो किसी इत्तिफ़ाक से कम नहीं ना ? मैंने हमेशा तुम्हारे कहे शब्दों को एक जीवित एहसास की तरह जी भरकर जिया और महसूस किया है. शब्दों के एक-एक घूँट को हलक से उतारते हुए मुझे हमेशा सुकून का एहसास हुआ. इस जादू में खोकर बाकी सब छोटा और झूठा लगने लगा है.

            'टेलीपेथी' के बारे में तो सुना होगा तुमने ? ये मानसिक संदेश वो जादू है कि अगर इन्हें भेजने वाला इंसान इसे भेजना चाहता हो और ग्रहण करने वाला इंसान इन्हें ग्रहण करना चाहता हो तो मीलों की दूरी भी कोई मायने नहीं रखती. इसे किसी ज़रिये की भी ज़रूरत नहीं होती. इसलिए जब दिल करे जी भरकर याद करना दोस्त, उसे जिसे तुम चाहते हो अपने पास देखना,साथ-साथ देखना.