शुक्रवार, मार्च 16, 2012

माँ को ख़्वाब में कम ही देखा करती हूँ

ये वक्त हो चला कोई दूसरा ख़्वाब देखने का, पर उस ख़्वाब का असर जाता ही नहीं.... 


उनींदी आँखों में हैरानी भरी थी. माँ को ख़्वाब में कम ही देखा करती हूँ , पर जब भी देखती हूँ नींद से जागते ही एक बेवजह की चिंता घेर लेती है कि वो ठीक तो हैं ना? 


सड़क खूब चौड़ी और साफ़-सुथरी लग रही थी. कुछ एक छोटी-मोटी गलियाँ उसके दोनों तरफ से आकर उससे जुड़ रहीं थीं. माँ एक अलग वाहन पर मेरे आगे-आगे और मैं उनसे कोई चार-पांच मीटर की दूरी पर एक दूसरे वाहन पर थी. मुझे याद है कि उन्होंने मुझे कहा कि मैं उनके पीछे-पीछे आती रहूँ. मैं ये सोचते हुए कि हम दोनों एक ही वाहन पर क्यों नहीं है....उनके पीछे जा रही थी कि अचानक माँ कहीं खो गयीं.


मैंने गाड़ी की रफ़्तार तेज कर ली और सड़क के दोनों ओर गलियों में भी देखती रही. पर माँ को कहीं नहीं पाया. आँसुओं की झड़ी लग गयी और सभी बिछड़े हुए याद आने लगे.... आगे एक रेस्तरां जैसी जगह पर सड़क खतम हो रही थी और फिर वही डरावनी ऊँचाई , जो कमोबेश मेरे हर ख़्वाब में मुझे डराने आ जाती है.  दायीं ओर एक पार्क जैसा कुछ था जिसमें ऊंचाई से गिरता झरना....


मैंने सहमकर अपनी गाड़ी को फिर से पीछे मोड़ लिया उसी सड़क पर. जाते समय जो दायीं ओर थी, अब उस बाईं ओर की, कोई दूसरी या तीसरी गली में से किसी ने आवाज़ लगाई कि मेरी माँ वहाँ है...मैं तेज़ी से उस गली में मुड गयी. एक बड़े से हॉलनुमा कमरे में कोई नहीं था जहाँ मैं अपनी माँ को ढूंढ रही थी...


अचानक आँख खुल गयी....मुझे आज दिन भर लगता रहा कि मैं अभी जाकर माँ से मिल लूँ या फिर जल्द ही वो मेरे पास आ जायें कि उन्हें देखे बहुत दिन बीत गये हैं....उनसे कहना चाहती हूँ कि उन्हें बहुत याद कर रही हूँ...कोई भी बहाना लेकर वो कुछ दिनों के लिए मेरे पास आ जायें....


माँ, ये मेरी सबसे प्रिय तस्वीरों में से एक है....आपके साथ शायद ये मेरी पहली तस्वीर होगी...!