मैंने तुमसे बात करके हमेशा खुशी ही महसूस की है....सुनो, तुम मुझे खुश क्यूँ नहीं लगते....कहो ना, तुम्हें किस चीज़ की तलाश है....अरे, अब तुम ऐसे क्यूँ देख रहे हो? मेरी आँखों में तुम्हारा कुछ खो गया है क्या?
कुछ मिला ही कहाँ है अब तक....तुम भी तो बस लम्हों के लिए ही मिलती हो ना? ऐसे मिलने से तकलीफ़ और भी बढ़ती है....मैं अब थक गया हूँ इस तरह....मैं तुम्हें पूरी तरह अपने पास चाहता हूँ....
कुछ भी पूरा कहाँ होता है...सब कुछ अधूरा सा ही तो है....हम सब कुछ ना कुछ पूरा करने की तलाश में ही तो हैं....क्यों कि हमें ऐसा लगता है कि पूर्णता में ही खूबसूरती है....पर सच तो ये है कि कोई भी तलाश पूरी होते ही अपनी खूबसूरती खो देती है....खूबसूरती सिर्फ़ उस कसक में है जो किसी चीज़ को पूरी तरह से पाने की ओर ले जा रही है....यूँ ख़्वाब भी कितने हसीन होते हैं.... छोड़ो ना, अब जाने भी दो....अच्छा एक बात कहो, तुम अब दोबारा कब मिलोगे मुझसे?
मैं हमेशा तुम्हारे पास ही तो हूँ...एक लम्हे को भी तुमसे, तुम्हारे ख्याल से अलग कहाँ हो पाता हूँ....हाँ, एक बात और....तुमने शायद पूरे होने को महसूस ही ना किया हो इसलिए ये तसल्ली दे रही हो मुझे....पूर्णता को जिया है कभी?
नहीं....जीना चाहती भी नहीं...
क्यों? डर लगता है प्रेम में पड़ने से? जानती हो, जिस तरह हमारा मिलना डेस्टिनी नहीं था उसी तरह हमारा अंत भी डेस्टिनी नहीं है....इस शुरुआत और अंत के बीच का जो सफ़र है ना उसमें प्रेम करना है....पूरी तरह से....
हमारा मिलना डेस्टिनी नहीं है ना? हमने एक दूसरे को तलाश किया और मिल भी गये....ये होना तय था और हो गया.....हम फिर मिलेंगे तुम तलाश करना मुझे जैसे इस बार किया था....सब छोड़कर.....खाली होकर मुझसे मिलना....और हाँ ,ये मत भूलना कि मैं तुम्हें बेहद चाहती हूँ....