मंगलवार, नवंबर 15, 2011

कितने छलावों के उस पार कोई एक सच होता है

दीवार पर लगी ढेर सारी तस्वीरों में से कुछ को एक दूसरी दीवार ने ढक लिया था, पर जो दिखाई दे रही थीं उनसे उस घर की खुशहाली का अंदाज़ा बखूबी लगाया जा सकता था. छुप गयी तस्वीरों में शायद कोई दूसरा पहलू भी छुपा हो. गुलाबी सी ठंड में भी ठंडे फर्श पर लेटकर लड़की अपने गालों पर बह रहे गर्म आंसुओं को शायद कोई राहत पहुँचाना चाह रही थी. दुबले से शरीर पर तंग पोशाक उसकी असहजता को और बढ़ा रही थी. कहीं भी राहत नहीं...उसने लेटे-लेटे ही सोचा.


कितने छलावों के उस पार कोई एक सच होता है. असहजता में ही वो फर्श छोड़कर खिड़की के पास जा खड़ी हुई तब उसे अंदाज़ा हुआ कि वो इस समय पहली मंज़िल पर खड़ी है, जहाँ से छिछले पानी से भरा हुआ कुंड दिखाई दे रहा है...दूर कहीं से चार-पाँच सुन्दर लड़कियां उसी की तरह की भारी पोशाकों में सहजता से दौड़ती हुई आती दिखाई दीं...जो दोनों हाथों से अपनी पोशाक को ज़रा ऊपर किये हुए कुंड के पानी को लांघकर उसकी तरफ बढ़ी आ रही थीं.


इस समय वह किसी का सामना करने की स्थिति में नहीं है...उनका तो बिल्कुल भी नहीं जो उसकी आँखे देखकर उसके दिल का हाल पढ़ लेते हैं...लड़की ने छुप जाने के लिए एक अकेला सुनसान कोना ढूंढ लिया. जब कोई आवाज़ देगा तब ही सोचा जायेगा.बचपन में खेला गया खेल 'हाइड एंड सीक' याद आ गया और वो बेफिक्री भी, जो तब हुआ करती थी. अब जिनसे छुपना था, वो लोग उसे कभी न ढूंढ पायें ऐसा उसने सोचा. एक बार उसे ये ख्याल भी आया कि अपने सब ख्यालों का गला घोंट दे. इसी सुनसान कोने में अपने चारों ओर एक ऐसी दीवार खड़ी कर ले कि वहाँ से हवा का आवागमन भी बंद हो जाये...


इन सारे ख्यालों की वजह वो ही तो है...जो छलावों के उस पार का सच है...

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अब सब बदलना चाहिए. उसे प्यार करते  रहने की आदत...उसे याद करते रहने की आदत...और फिर रंगीनियों में भी उदास रहने की आदत...

इस  बार जब मौसम बदलेगा , आँसुओं की गरमाहट गालों पर नहीं , महबूब के होठों पर धर दी जायेगी...

मंगलवार, नवंबर 08, 2011

अपनी आत्मा के बारे में ही सबसे ज्यादा सोचना चाहिए


अपने हिस्से का आसमां चुराते-चुराते नादान शाम न जाने कब पूरा आसमां पाने की फ़िराक में रहने लगी. शायद उसे इस बात का गुमां न रहा कि आसमां  के पास खुश होने की और भी वजहें हैं. यूँ एक दिन आसमां जब उसके आगोश में सिमट आया तो शाम अपने चाहने वालों से भी जी चुराने लगी. क्षितिज पर हुई इस मुलाकात के बाद आसमां ने अपनी रात चाँद-तारों के साथ बिताई और वो अँधेरे और रोशनी के इस खेल से खुश था. सुबह के खिलते सूरज को भी तो उसने अपनी खुशी की वजह बताया.


         शाम के आस-पास सुखद रंगों, ध्वनियों,प्रकाश और गतियों का जादू सा था. वह सिर्फ तभी नहीं नाचती थी जब उसकी आत्मा बहुत थकन महसूस करती थी या आराम करना चाहती थी. अब अचानक उसने आसमां को एक बिल्कुल नए और अप्रत्याशित रूप में देखा. ऊब पैदा करने वाले रूप के साथ नाचना संभव नहीं था इसलिए उसकी आत्मा ने आराम की इजाज़त माँगी.


            इस अप्रिय और अटपटी सी बात के बाद शाम कुछ उदास सी रहने लगी. आसमां से वो केवल एक बात के लिए मिन्नत करती है कि उसे इस असह्य स्थिति से उबार लिया जाये जिसमें वह इस समय है. शाम का ह्रदय हताशा से फटा जा रहा है और उदासीन और शांत चेहरे के साथ वो चुपचाप आतंरिक संघर्ष कर रही है. ये वही शाम है जिसे आसमां ने अपना प्यार भेंट किया है और बदले में प्यार ही पाया है. अपने आस-पास प्रकृति की उदासी में डूबे होने के बावजूद शाम के मन में आसमां से मिलने की उमंग है. बात साफ़ है कि शाम ने कहीं सुन रखा था अपनी आत्मा के बारे में ही सबसे ज्यादा सोचना चाहिए.